गरजते बादल, भीगता मौसम,
रिमझिम बारिश, कड़कती बिजली,
चाह्चाते पक्षी, महकती चमेली!
कारे बादल, भीगते पत्ते,
गरम पकोड़े, खेलते बच्चे,
शाम का वक़्त, हरियाली चारों ओर,
ख़ूबसूरती को बांधती कोई अद्रश्य डोर!
तपती गर्मी में मिला सूखी धरती को आराम,
बार बार याद आये बरसात कि वो शाम!
पत्तों पे गिरती बूंदों की छम-छम आवाज़,
गीली टहनियों पे पत्तों का वो नाच,
कोयल का छेड़ा हुआ मीठा राग,
मौसम छुपाता हुआ मानो कोई भीगता राज़!
पेड़ नाचते ताल पे ठंडी हवा की,
बादल गरजते सुनके दहाढ़ बिजली की,
सोंधी खुशबू गीली मिट्टी की,
हरी घांस पर बूँदें शबनम सी,
समां सुहाना, मौसम रंगीन,
प्रकति के आये जवानी के दिन!
कलियाँ खिलीं, फूल बनीं,
सूखी पत्तियां भीगने लगीं,
भारी टहनियां मुस्कुराने लगीं,
पेड़ों पे ज़िन्दागियाँ गाने लगीं!
आसमान में कारे बादल खेलते एक दूसरे से,
बूंदों को समेटे नाचते मस्त मोर से,
बिजली ताके मोर को, झांके झरोखे से,
इस रिश्ते को समझें, बूँदें गुनगुनाएं बादलों के ओट से!
हवा संग रिश्ता बनाती, गिरी एक बूँद किसी बादल के गर्भ से,
मस्त हवा संग बहती, जा रही अपने जीवन के दूसरे छोर पे,
छोड़ा हवा ने उसे, जहाँ के लिए चली थी वो,
फूल, पत्ती, पक्षी, इंसान के लिए जन्मी थी वो,
अपना काम पूरा करके, चली जाएगी वापस वो,
नदिया से रिश्ता बनाके, सागर से उड़ जाएगी वो!
बैठी थी खिड़की पे, देख रही थी सब दिल थाम,
भेंट में दिया हमें, इश्वर ने कितना हसीं इनाम,
क़द्र नहीं करते हम इसकी, नष्ट करते हैं प्रकृति को सरेआम
फिर याद आएगी बरसात कि वो शाम...
---सेतु
फोटो क्रेडिट: गूगल इमेज
NICE बहुत उम्दा कविता .. बधाइयां
ReplyDeleteआपका फोटो यूज़ किया है
आपत्ति हो तो बताएं
मिसफिट Misfit: मैं .... पानी हूँ पानी हूँ पानी हूँ
http://sanskaardhani.blogspot.in/2016/05/blog-post_5.html