सो रही थी मैं, ठंडी हवा की गोद में,
बुन रही थी सपने, गहरी नींद के आघोष में,
खूबसूरत रंगों में रंगी थी,
तित्तली कि तरह उड़ रही थी ,
वो मेरा खुला आसमान था,
मेरे सपनों का जहाँ था,
जिन धुनों पे नाच रही थी, वो मेरे अंतर्मन का राग था!
अचानक गहरा अँधेरा छा गया,
लाल, हरा,गुलाबी सब काला पड़ गया,
मीठी नींद का सफ़र कडवा सा हो गया,
डर गयी मैं, कि मेरा दिल मैला हो गया,
इतना अँधेरा कि घबरा गयी मैं,
डर से कांपने लगी, रोई और इश्वर को पुकारने लगी मैं!
सुन्दर सपनों के वो रंग फीके हो गए,
खिलते फूल, बहते झरने सब थम से गए,
हवा चलनी बंद हो गयी, लगा मानो मेरी सांसें रुक सी गयीं,
माँ को पुकारा मैंने , भगवन को याद किया,
पर मेरा होश किसी ने ना लिया!
तभी अचानक दूर रौशनी की किरण नज़र आने लगी,
सुन्दर कोमल छवि दुलार की पास आने लगी,
कभी सूरज कि तरह तेज़ , वो कभी चंदा सी शीतल,
कभी सागर सी चंचल, तो कभी बादल सी मनचल,
वो देखती ऐसे मुझे, मानो प्यार बरसा रही हो,
पुण्य प्रेम की वर्षा में नेहला रही हो!
हर दिशा में केवल वो ही दिख रही थी,
बच्चे कि तरह दिल को मोहने सी लगी थी,
नज़र नहीं हट रही थी उस छवि से मेरी,
लग रहा था बस यही दुनिया है मेरी,
यहीं रह जाऊं, इस छवि में खो जाऊं,
वक़्त से, दुनिया से परे हो जाऊं!
उस महा लीला में झूम रही थी,
सांवरी छवि मन में बसा रही थी,
तभी अचानक आँख खुली मेरी,
बादलों से खेलती, सूर्य कि लालिमा दिखी,
पेड़ों पे गाते पक्षिओं की चेहचाहट सुनी,
लगा इसी खूबसूरती को ही तो निहार रही थी,
सपने में सच्चाई से पर्दा उठा रही थी!
जो मेरे पास पहले से था, उसकी क़द्र नहीं थी,
वो नज़ारा सामने था, उसे कभी देखती नहीं थी,
अब तक हर रंग एक था, सुनहरी किरणों की परवाह नहीं थी,
सुख और दुःख के बादलों की पहचान भी नहीं थी!
जब अँधेरे ने घेरा, तब रौशनी दिखने लगी,
माँ की गोद से निकली, तो धूप छाँव छूने लगी,
कड़क धूप के नीचे, ठंडी हवा का महत्व जानन्ने लगी,
अनजानों के बीच रहके, अपनों को पहचानने लगी!
सोचती हूँ तो लगता है, सपने में जिससे ये सीख मिली थी,
वो रौशनी जो मुझे दिखी थी, जिसके संग खेली थी,
पहले लगता था सपना, पर अब यकीन से कहती हूँ,
उस रात सपने में मैं भगवान् से मिली थी......
--- सेतु
फोटो क्रेडिट: गूगल इमेज
क्या बताऊ! शब्द नही है मेरे पास ! बस् हृदय की बात आपने बोल दि | आपका बहुत धन्यवाद | फोरम पे शेअर करने के लिये| ऐसेही सुंदर मर्मस्पर्शी काव्य के उपहार देते रहिये | वोट तो करना व्यवहार है पर मन का आनंंद बात नही सकती | पुन: पुन: मनन चिंतन करना होगा इस काव्य का|
ReplyDelete