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(Spoil) Sport Reporting in India!

India, the land of rich culture and traditions, land of enthusiastic people, fervent fans and dedicated followers. Indians have a unique quality of idolizing, they do it with extreme faith and trust. We are dotting lovers, admirers and followers. From politics to cinema to sports to religion, you name it and there will be lakhs drooling out with passionate devotion.  Amongst this, sports after Bollywood unites the country. From Kashmir to Kanyakumari, one will hardly find a person who do not play or follow one or the other kind of sport. Be it local kabaddi match to international cricket tournament to indoor games like Ludo, carrom to swimming and badminton, people find out time from their busy schedules for their favorite sport.  Cashing on this fervent nature of Indian audience, many industries are flourishing. Amongst this is, news industry which had shown major boom in last two decades. Print and Electronic media are the two major sources of news in the the country. Print mainly

"Think Health, Not Drugs"

"A drug is neither moral or immoral - it's a chemical compound. The compound itself is not a menace to society until a human being treats it as if consumption bestowed a temporary licence to act like an asshole" - By Frank Zappa (The Real Frank Zappa, 1989) The above statement by Frank Zappa stands true for today's LSD generation. 26th June is celebrated as World's Drugs Day across the globe and this year's theme is "Think Health, Not Drugs". With globalization and world becoming a global village, the problem of drug abuse and trafficking has crossed national boundaries to become a global problem. Hence, i t becomes important for the young country like India to stand up and against such abuse which is limping the country slowly.  Society especially children and youngsters are vulnerable to the abuse as reasons are varied ranging from loneliness to blind race of establishing unique identity. It becomes the moral duty of parents and teachers

Hues and tones of Indian Cinema

Cinema, this word has always excited youngsters across the nation in all times. The word brings with it the energy, motivation and push to move on in life no matter how it treats you. Evolved as a tool of mass communication, used as a medium for spreading social messages and helping people to improve their way of thinking, it has now become a dynamic and flourishing industry.  From the beautiful Madhubala to gorgeous Madhuri and Sridevi to hot-hot Kareena and Katrina, this cinema crazy country loves all in their unique styles and sizes.  From charismatic Sunil Dutt to handsome Vinod Khanna, from stylish Rajesh Khanna to angry young Amitabh Bachhan, from hairy Anil Kapoor to six packed Shahrukh Khan and Shahid Kapoor, following the styles and trends set by the leading men has become a genetic habit.  Cinema in India is popularly called as "Bollywood", a religion fanatically followed by millions of people and artistes worshiped as gods and goddesses. It has always been a tren

~Weight losing campaign~

Writing all this on blog is silly...but this one is for quick reference: Fruits Grapefruit, Mango, Papaya, Cranberry, Watermelon, Apples, Blueberries, Cantaloupe Vegetables Green Beans, Spinach, Asparagus, Broccoli, Cabbage, Lettuce Carrot, Cucumber, Garlic, Onion, Radish, Turnip, Zucchini, Cauliflower, Celery, Hot Chili All THE BEST TO ME!!! !!

वापसी का रास्ता ना हो!

ऐ ज़िन्दगी मुझे ले चल वहां जहाँ वक़्त कि कोई सीमा ना हो, दुनिया कि कोई रीत ना हो, समाज का कोई बंधन ना हो, दुःख से किसी को पीड़ा ना हो,  इतनी दूर चली जाऊं मैं, कि.... वापसी का रास्ता ना हो! ना वहां ज़मीन हो, ना ही आसमान हो, रंगों में बस सफ़ेद का ही नाम हो, ना शंख हो, ना आज़ान हो, ना सुर हों, ना ही कोई ताल हो, ना धूप हो, ना वर्षा कि बौछार हो, उदासी और आसुओं का ना कोई स्थान हो, इतनी दूर चली जाऊं मैं, कि.... वापसी का रास्ता ना हो! सुख और दुःख का खेला ना हो, खोने पाने का झेमला ना हो, रिश्ते नातों का मेला ना हो, जाना चाहती हूँ ऐसी जगह जहाँ कोई कभी अकेला ना हो, इतनी दूर चली जाऊं मैं, कि.... वापसी का रास्ता ना हो! पता है मुझे, ऐसा कभी हो नहीं सकता यहाँ से कोई भाग नहीं सकता, जो करा है, भरना यहीं पड़ेगा, सुख-दुःख भोगना पड़ेगा, साँसों को पूरा करना पड़ेगा, जीवन तो पूरा जीना पड़ेगा, फिर भी क्यूँ मन करता है मेरा कोई ठिकाना ऐसा हो, जहाँ चली जाऊं मैं, और वापसी का रास्ता ना हो!                                                     ---- सेतु  फोटो क्रेडिट: गूगल इमेज 

वक़्त वक़्त कि बात है.... वक़्त किसी का नहीं है!

हर दिन एक सा नहीं है हर रात सुकून भरी नहीं है, कब किसे जगाये, कब किसे सुलाए, ये वक़्त किसी का सगा नहीं है,   वक़्त वक़्त कि बात है....वक़्त किसी का नहीं है! कभी लगे दुनिया हसीन, तो कभी लगे नमकीन, कभी हंसाये तो कभी रुलाये, कभी करवटें दिलाये तो कभी थपकी देके सुलाए, पल-पल कि माला से बनती ज़िन्दगी कि लड़ी है, कब टूट जाए ये डोर किसी को पता नहीं  है, वक़्त वक़्त कि बात है.... वक़्त किसी का नहीं है! जब कारे बादल ढक लें  किरणों को अपनी ओड़ में जब कुछ समझ ना आये जीवन कि भाग-दौड़ में, जब सूरज लगे उदास और चंदा लगे निराश, जब कोयल गाये बेराग और मिठास लगे खटास, समझ लेना जो बोया था उसे पाने कि घड़ी नज़दीक ही  है, वक़्त कि पोटली अब भर चुकी  है, वक़्त वक़्त कि बात है.... वक़्त किसी का नहीं है!    रंगों से खेलना सबको भाता है हर कोई अपनी ही धुन में गाता है, रंगों का क्या कहना, रंगीन ज़िन्दगी सब चाहते हैं, तभी तो अपनी अलग धुन सब बनाते हैं, मगर दीवानों, गुम ना जाना इस मेले में, भूल ना जाना जीवन के खेले में, कि सुर पुराने भी लगते हैं, रंग फीके भी पड़ते हैं, हालात कभी एक से रहते नहीं, बीते दिन वापस कभी आते

सोच रहीं हूँ सोचूं... लेकिन सोचना चाहती नहीं

सोचती हूँ सोचूं यूँही बैठे-बैठे ख्याल आया की कुछ सोचूं, जब सोचने बैठी तो लगा क्या होगा सोचके, क्या लोग बदल जाएंगे, या वक़्त बदल जाएगा, ज़िन्दगी आसान हो जाएगी, या इंसान कि बुद्धि राह पे आएगी, सोचती हूँ सोचूं लेकिन क्या सोचूं! ये ज़िन्दगी क्यूँ है, हम इन्सान क्यों हैं, हम जीते क्यूँ हैं, हम मरते क्यूँ हैं, वक़्त क्यूँ ठहर नहीं जाता, सब अछा क्यूँ  हो  नहीं जाता, झूठ मर क्यूँ नहीं जाता, सच वक़्त पे सामने क्यूँ नहीं आता, सोचती हूँ सोचूं लेकिन क्यूँ सोचूं! रह-रह के ख्याल आता है मन में अगर सब सोचें तो क्या होगा जीवन में, सुधर जाएंगे सबके रात दिन, थोड़ा आसन हो जाएगा जीवन, जीवन साँसों की नाज़ुक कड़ी है, दुनिया जीवन की परीक्षा लेने खड़ी है, क्यों न इस परीक्षा की घड़ी में, दें एक दुसरे का साथ, और बनाएं पूरी दुनिया को अपना परिवार! सोचती हूँ सोचूं लेकिन कब सोचूं! जब सब खत्म हो जाएगा तब, या लड़ते-लड़ते थक जाउंगी तब, जब थक जाएगी ज़िन्दगी तब, या मैं ज़िन्दगी से थक जाउंगी तब! वक़्त से जो लड़ा वो न रहा कहीं का, सुना था दादी से बचपन में, दादी भी हार गयी थी दुनिया से, अब आता है समझ में, कहती थी वो क