जहाँ वक़्त कि कोई सीमा ना हो,
दुनिया कि कोई रीत ना हो,
समाज का कोई बंधन ना हो,
दुःख से किसी को पीड़ा ना हो,
इतनी दूर चली जाऊं मैं,
कि.... वापसी का रास्ता ना हो!
ना वहां ज़मीन हो, ना ही आसमान हो,
रंगों में बस सफ़ेद का ही नाम हो,
ना शंख हो, ना आज़ान हो,
ना सुर हों, ना ही कोई ताल हो,
ना धूप हो, ना वर्षा कि बौछार हो,
उदासी और आसुओं का ना कोई स्थान हो,
इतनी दूर चली जाऊं मैं,
कि.... वापसी का रास्ता ना हो!
सुख और दुःख का खेला ना हो,
खोने पाने का झेमला ना हो,
रिश्ते नातों का मेला ना हो,
जाना चाहती हूँ ऐसी जगह
जहाँ कोई कभी अकेला ना हो,
इतनी दूर चली जाऊं मैं,
कि.... वापसी का रास्ता ना हो!
पता है मुझे, ऐसा कभी हो नहीं सकता
यहाँ से कोई भाग नहीं सकता,
जो करा है, भरना यहीं पड़ेगा,
सुख-दुःख भोगना पड़ेगा,
साँसों को पूरा करना पड़ेगा,
जीवन तो पूरा जीना पड़ेगा,
फिर भी क्यूँ मन करता है मेरा
कोई ठिकाना ऐसा हो,
जहाँ चली जाऊं मैं,
और वापसी का रास्ता ना हो!
---- सेतु
फोटो क्रेडिट: गूगल इमेज
Beautifully expressed!
ReplyDeleteI could never manage to write a poem in Hindi ever, even though I am really good with the language! :|